सोमवार, 23 जनवरी 2012

सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act)

सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act) भारत के संसद द्वारा पारित एक कानून है जो 12 अक्तूबर, 2005 को लागू हुआ (15 जून, 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। जम्मू एवं काश्मीर मे यह जम्मू एवं काश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतरगत लागू है।
 
सूचना का अधिकार क्या है?
 
संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना का अधिकार मौलिक अधिकारों का एक भाग है. अनुच्छेद 19(1) के अनुसार प्रत्येक नागरिक को बोलने व अभिव्यक्ति का अधिकार है. 1976 में सर्वोच्च न्यायालय ने "राज नारायण विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकार" मामले में कहा है कि लोग कह और अभिव्यक्त नहीं कर सकते जब तक कि वो न जानें. इसी कारण सूचना का अधिकार अनुच्छेद 19 में छुपा है. इसी मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि भारत एक लोकतंत्र है. लोग मालिक हैं. इसलिए लोगों को यह जानने का अधिकार है कि सरकारें जो उनकी सेवा के लिए हैं, क्या कर रहीं हैं? व प्रत्येक नागरिक कर/ टैक्स देता है. यहाँ तक कि एक गली में भीख मांगने वाला भिखारी भी टैक्स देता है जब वो बाज़ार से साबुन खरीदता है.(बिक्री कर, उत्पाद शुल्क आदि के रूप में). नागरिकों के पास इस प्रकार यह जानने का अधिकार है कि उनका धन किस प्रकार खर्च हो रहा है. इन तीन सिद्धांतों को सर्वोच्च न्यायालय ने रखा कि सूचना का अधिकार हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा हैं.
 
यदि आरटीआई एक मौलिक अधिकार है, तो हमें यह अधिकार देने के लिए एक कानून की आवश्यकता क्यों है?

ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि आप किसी सरकारी विभाग में जाकर किसी अधिकारी से कहते हैं, "आरटीआई मेरा मौलिक अधिकार है, और मैं इस देश का मालिक हूँ. इसलिए मुझे आप कृपया अपनी फाइलें दिखायिए", वह ऐसा नहीं करेगा. व संभवतः वह आपको अपने कमरे से निकाल देगा. इसलिए हमें एक ऐसे तंत्र या प्रक्रिया की आवश्यकता है जिसके तहत हम अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सकें. सूचना का अधिकार 2005, जो 13 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ हमें वह तंत्र प्रदान करता है. इस प्रकार सूचना का अधिकार हमें कोई नया अधिकार नहीं देता. यह केवल उस प्रक्रिया का उल्लेख करता है कि हम कैसे सूचना मांगें, कहाँ से मांगे, कितना शुल्क दें आदि.

सूचना का अधिकार कब लागू हुआ?

केंद्रीय सूचना का अधिकार 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ. हालांकि 9 राज्य सरकारें पहले ही राज्य कानून पारित कर चुकीं थीं. ये थीं: जम्मू कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम और गोवा.

सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं?

सूचना का अधिकार 2005 प्रत्येक नागरिक को शक्ति प्रदान करता है कि वो:

    * सरकार से कुछ भी पूछे या कोई भी सूचना मांगे.
    * किसी भी सरकारी निर्णय की प्रति ले.
    * किसी भी सरकारी दस्तावेज का निरीक्षण करे.
    * किसी भी सरकारी कार्य का निरीक्षण करे.
    * किसी भी सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले.

सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं?

केन्द्रीय कानून जम्मू कश्मीर राज्य के अतिरिक्त पूरे देश पर लागू होता है. सभी इकाइयां जो संविधान, या अन्य कानून या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बनी हैं या सभी इकाइयां जिनमें गैर सरकारी संगठन शामिल हैं जो सरकार के हों, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित किये जाते हों.


क्या निजी इकाइयां सूचना के अधिकार के अर्न्तगत आती हैं?

सभी निजी इकाइयां, जोकि सरकार की हैं, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित की जाती हैं सीधे ही इसके अर्न्तगत आती हैं. अन्य अप्रत्यक्ष रूप से इसके अर्न्तगत आती हैं. अर्थात, यदि कोई सरकारी विभाग किसी निजी इकाई से किसी अन्य कानून के तहत सूचना ले सकता हो तो वह सूचना कोई नागरिक सूचना के अधिकार के अर्न्तगत उस सरकारी विभाग से ले सकता है.

क्या सरकारी दस्तावेज गोपनीयता कानून 1923 सूचना के अधिकार में बाधा नहीं है?

नहीं, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अनुच्छेद 22 के अनुसार सूचना का अधिकार कानून सभी मौजूदा कानूनों का स्थान ले लेगा.

क्या पीआईओ सूचना देने से मना कर सकता है?

एक पीआईओ सूचना देने से मना उन 11 विषयों के लिए कर सकता है जो सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 8 में दिए गए हैं. इनमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि. सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी अनुसूची में उन 18 अभिकरणों की सूची दी गयी है जिन पर ये लागू नहीं होता. हालांकि उन्हें भी वो सूचनाएं देनी होंगी जो भ्रष्टाचार के आरोपों व मानवाधिकारों के उल्लंघन से सम्बंधित हों.

क्या अधिनियम विभक्त सूचना के लिए कहता है?

हाँ, सूचना का अधिकार अधिनियम के दसवें अनुभाग के अंतर्गत दस्तावेज के उस भाग तक पहुँच बनायीं जा सकती है जिनमें वे सूचनाएं नहीं होतीं जो इस अधिनियम के तहत भेद प्रकाशन से अलग रखी गयीं हैं.

क्या फाइलों की टिप्पणियों तक पहुँच से मना किया जा सकता है?
नहीं, फाइलों की टिप्पणियां सरकारी फाइल का अभिन्न अंग हैं व इस अधिनियम के तहत भेद प्रकाशन की विषय वस्तु हैं. ऐसा केंद्रीय सूचना आयोग ने 31 जनवरी 2006 के अपने एक आदेश में स्पष्ट कर दिया है.

मुझे सूचना कौन देगा?

एक या अधिक अधिकारियों को प्रत्येक सरकारी विभाग में जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) का पद दिया गया है. ये जन सूचना अधिकारी प्रधान अधिकारियों के रूप में कार्य करते हैं. आपको अपनी अर्जी इनके पास दाखिल करनी होती है. यह उनका उत्तरदायित्व होता है कि वे उस विभाग के विभिन्न भागों से आपके द्वारा मांगी गयी जानकारी इकठ्ठा करें व आपको प्रदान करें. इसके अलावा, कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के पद पर सेवायोजित किया गया है. उनका कार्य केवल जनता से अर्जियां स्वीकारना व उचित पीआईओ के पास भेजना है.

अपनी अर्जी मैं कहाँ जमा करुँ?

आप ऐसा पीआईओ या एपीआईओ के पास कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं. वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजे.

क्या इसके लिए कोई फीस है? मैं इसे कैसे जमा करुँ?

हाँ, एक अर्ज़ी फीस होती है. केंद्र सरकार के विभागों के लिए यह 10रु. है. हालांकि विभिन्न राज्यों ने भिन्न फीसें रखीं हैं. सूचना पाने के लिए, आपको 2रु. प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देना होता है. यह विभिन्न राज्यों के लिए अलग- अलग है. इसी प्रकार दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए भी फीस का प्रावधान है. निरीक्षण के पहले घंटे की कोई फीस नहीं है लेकिन उसके पश्चात् प्रत्येक घंटे या उसके भाग की 5रु. प्रतिघंटा फीस होगी. यह केन्द्रीय कानून के अनुसार है. प्रत्येक राज्य के लिए, सम्बंधित राज्य के नियम देखें. आप फीस नकद में, डीडी या बैंकर चैक या पोस्टल आर्डर जो उस जन प्राधिकरण के पक्ष में देय हो द्वारा जमा कर सकते हैं. कुछ राज्यों में, आप कोर्ट फीस टिकटें खरीद सकते हैं व अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं. ऐसा करने पर आपकी फीस जमा मानी जायेगी. आप तब अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं.

मुझे क्या करना चाहिए यदि पीआईओ या सम्बंधित विभाग मेरी अर्ज़ी स्वीकार न करे?
आप इसे डाक द्वारा भेज सकते हैं. आप इसकी औपचारिक शिकायत सम्बंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें. सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर 25000रु. का दंड लगाने का अधिकार है जिसने आपकी अर्ज़ी स्वीकार करने से मना किया था.

क्या सूचना पाने के लिए अर्ज़ी का कोई प्रारूप है?

केंद्र सरकार के विभागों के लिए, कोई प्रारूप नहीं है. आपको एक सादा कागज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही अर्ज़ी देनी चाहिए. हालांकि कुछ राज्यों और कुछ मंत्रालयों व विभागों ने प्रारूप निर्धारित किये हैं. आपको इन प्रारूपों पर ही अर्ज़ी देनी चाहिए. कृपया जानने के लिए सम्बंधित राज्य के नियम पढें.

मैं सूचना के लिए कैसे अर्ज़ी दूं?

एक साधारण कागज़ पर अपनी अर्ज़ी बनाएं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा करें. (अपनी अर्ज़ी की एक प्रति अपने पास निजी सन्दर्भ के लिए अवश्य रखें)

मैं अपनी अर्ज़ी की फीस कैसे दे सकता हूँ?

प्रत्येक राज्य का अर्ज़ी फीस जमा करने का अलग तरीका है. साधारणतया, आप अपनी अर्ज़ी की फीस ऐसे दे सकते हैं:

    * स्वयं नकद भुगतान द्वारा (अपनी रसीद लेना न भूलें)
    * डाक द्वारा:

    डिमांड ड्राफ्ट से
    भारतीय पोस्टल आर्डर से
    मनी आर्डर से [केवल कुछ राज्यों में]
    कोर्ट फीस टिकट से [केवल कुछ राज्यों में]
    बैंकर चैक से

    * कुछ राज्य सरकारों ने कुछ खाते निर्धारित किये हैं. आपको अपनी फीस इन खातों में जमा करानी होती है. इसके लिए, आप एसबीआई की किसी शाखा में जा सकते हैं और राशि उस खाते में जमा करा सकते हैं और जमा रसीद अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ लगा सकते हैं. या आप अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ उस विभाग के पक्ष में देय डीडी या एक पोस्टल आर्डर भी लगा सकते हैं.

क्या मैं अपनी अर्जी केवल पीआईओ के पास ही जमा कर सकता हूँ?

नहीं, पीआईओ के उपलब्ध न होने की स्थिति में आप अपनी अर्जी एपीआईओ या अन्य किसी अर्जी लेने के लिए नियुक्त अधिकारी के पास अर्जी जमा कर सकते हैं.

क्या करूँ यदि मैं अपने पीआईओ या एपीआईओ का पता न लगा पाऊँ?

यदि आपको पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप अपनी अर्जी पीआईओ c/o विभागाध्यक्ष को प्रेषित कर उस सम्बंधित जन प्राधिकरण को भेज सकते हैं. विभागाध्यक्ष को वह अर्जी सम्बंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी.

क्या मुझे अर्जी देने स्वयं जाना होगा?

आपके राज्य के फीस जमा करने के नियमानुसार आप अपनी अर्जी सम्बंधित राज्य के विभाग में अर्जी के साथ डीडी, मनी आर्डर, पोस्टल आर्डर या कोर्ट फीस टिकट संलग्न करके डाक द्वारा भेज सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं. वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजे.

क्या सूचना प्राप्ति की कोई समय सीमा है?

हाँ, यदि आपने अपनी अर्जी पीआईओ को दी है, आपको 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि आपने अपनी अर्जी सहायक पीआईओ को दी है तो सूचना 35 दिनों के भीतर दी जानी चाहिए. उन मामलों में जहाँ सूचना किसी एकल के जीवन और स्वतंत्रता को प्रभावित करती हो, सूचना 48 घंटों के भीतर उपलब्ध हो जानी चाहिए.

क्या मुझे कारण बताना होगा कि मुझे फलां सूचना क्यों चाहिए?
बिलकुल नहीं, आपको कोई कारण या अन्य सूचना केवल अपने संपर्क विवरण (जो हैं नाम, पता, फोन न.) के अतिरिक्त देने की आवश्यकता नहीं है. अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जायेगा.

क्या पीआईओ मेरी आरटीआई अर्जी लेने से मना कर सकता है?

नहीं, पीआईओ आपकी आरटीआई अर्जी लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता. चाहें वह सूचना उसके विभाग/ कार्यक्षेत्र में न आती हो, उसे वह स्वीकार करनी होगी. यदि अर्जी उस पीआईओ से सम्बंधित न हो, उसे वह उपयुक्त पीआईओ के पास 5 दिनों के भीतर अनुच्छेद 6(2) के तहत भेजनी होगी.

इस देश में कई अच्छे कानून हैं लेकिन उनमें से कोई कानून कुछ नहीं कर सका. आप कैसे सोचते हैं कि ये कानून करेगा?

यह कानून पहले ही कर रहा है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार कोई कानून किसी अधिकारी की अकर्मण्यता के प्रति जवाबदेही निर्धारित करता है. यदि सम्बंधित अधिकारी समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराता है, उस पर 250रु. प्रतिदिन के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है. यदि दी गयी सूचना गलत है तो अधिकतम 25000रु. तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माना आपकी अर्जी गलत कारणों से नकारने या गलत सूचना देने पर भी लगाया जा सकता है. यह जुर्माना उस अधिकारी के निजी वेतन से काटा जाता है.

क्या अब तक कोई जुमाना लगाया गया है?

हाँ, कुछ अधिकारियों पर केन्द्रीय व राज्यीय सूचना आयुक्तों द्वारा जुर्माना लगाया गया है.

क्या पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि प्रार्थी को दी जाती है?

नहीं, जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है. हांलांकि अनुच्छेद 19 के तहत, प्रार्थी मुआवजा मांग सकता है.

मैं क्या कर सकता हूँ यदि मुझे सूचना न मिले?

यदि आपको सूचना न मिले या आप प्राप्त सूचना से संतुष्ट न हों, आप अपीलीय अधिकारी के पास सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 19(1) के तहत एक अपील दायर कर सकते हैं.

पहला अपीलीय अधिकारी कौन होता है?

प्रत्येक जन प्राधिकरण को एक पहला अपीलीय अधिकारी बनाना होता है. यह बनाया गया अधिकारी पीआईओ से वरिष्ठ रैंक का होता है.

क्या प्रथम अपील का कोई प्रारूप होता है?

नहीं, प्रथम अपील का कोई प्रारूप नहीं होता (लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने प्रारूप जारी किये हैं). एक सादा पन्ने पर प्रथम अपीली अधिकारी को संबोधित करते हुए अपनी अपीली अर्जी बनाएं. इस अर्जी के साथ अपनी मूल अर्जी व पीआईओ से प्राप्त जैसे भी उत्तर (यदि प्राप्त हुआ हो) की प्रतियाँ लगाना न भूलें.

क्या मुझे प्रथम अपील की कोई फीस देनी होगी?

नहीं, आपको प्रथम अपील की कोई फीस नहीं देनी होगी, कुछ राज्य सरकारों ने फीस का प्रावधान किया है.

कितने दिनों में मैं अपनी प्रथम अपील दायर कर सकता हूँ?

आप अपनी प्रथम अपील सूचना प्राप्ति के 30 दिनों व आरटीआई अर्जी दाखिल करने के 60 दिनों के भीतर दायर कर सकते हैं.

क्या करें यदि प्रथम अपीली प्रक्रिया के बाद मुझे सूचना न मिले?

यदि आपको प्रथम अपील के बाद भी सूचना न मिले तो आप द्वितीय अपीली चरण तक अपना मामला ले जा सकते हैं. आप प्रथम अपील सूचना मिलने के 30 दिनों के भीतर व आरटीआई अर्जी के 60 दिनों के भीतर (यदि कोई सूचना न मिली हो) दायर कर सकते हैं.

द्वितीय अपील क्या है?

द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है. आप द्वितीय अपील सूचना आयोग के पास दायर कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध आपके पास केद्रीय सूचना आयोग है. प्रत्येक राज्य सरकार के लिए, राज्य सूचना आयोग हैं.

क्या द्वितीय अपील के लिए कोई प्रारूप है?

नहीं, द्वितीय अपील के लिए कोई प्रारूप नहीं है (लेकिन राज्य सरकारों ने द्वितीय अपील के लिए भी प्रारूप निर्धारित किए हैं). एक सादा पन्ने पर केद्रीय या राज्य सूचना आयोग को संबोधित करते हुए अपनी अपीली अर्जी बनाएं. द्वितीय अपील दायर करने से पूर्व अपीली नियम ध्यानपूर्वक पढ लें. आपकी द्वितीय अपील निरस्त की जा सकती है यदि वह अपीली नियमों को पूरा नहीं करती है.

क्या मुझे द्वितीय अपील के लिए फीस देनी होगी?

नहीं, आपको द्वितीय अपील के लिए कोई फीस नहीं देनी होगी. हांलांकि कुछ राज्यों ने इसके लिए फीस निर्धारित की है.

मैं कितने दिनों में द्वितीय अपील दायर कर सकता हूँ?

आप प्रथम अपील के निष्पादन के 90 दिनों के भीतर या उस तारीख के 90 दिनों के भीतर कि जब तक आपकी प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर कर सकते हैं.

यह कानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है?

यह कानून कैसे रुके हुए कार्य पूरे होने में सहायता करता है अर्थात् वह अधिकारी क्यों अब वह आपका रुका कार्य करता है जो वह पहले नहीं कर रहा था?
[संपादित करें] एक उदाहरण

आइए नन्नू का मामला लेते हैं. उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था. लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत अर्जी दी, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया. नन्नू ने क्या पूछा? उसने निम्न प्रश्न पूछे:

1. मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए 27 फरवरी 2004 को अर्जी दी. कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं अर्थात् मेरी अर्जी किस अधिकारी पर कब पहुंची, उस अधिकारी पर यह कितने समय रही और उसने उतने समय क्या किया?

2. नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड 10 दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था. हांलांकि अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है. कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?

3. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जायेगी? वह कार्रवाई कब तक की जायेगी?

4. अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जायेगा?

साधारण परिस्थितियों में, ऐसी एक अर्जी कूड़ेदान में फेंक दी जाती. लेकिन यह कानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है. अब ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना आसान नहीं होगा.

पहला प्रश्न है- कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं.

कोई उन्नति हुई ही नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है. वरन यह कागज़ पर गलती स्वीकारने जैसा होगा.

अगला प्रश्न है- कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया.

यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है. एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति काफी सतर्क होता है. इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है.

मुझे सूचना प्राप्ति के पश्चात् क्या करना चाहिए?

इसके लिए कोई एक उत्तर नहीं है. यह आप पर निर्भर करता है कि आपने वह सूचना क्यों मांगी व यह किस प्रकार की सूचना है. प्राय: सूचना पूछने भर से ही कई वस्तुएं रास्ते में आने लगतीं हैं. उदाहरण के लिए, केवल अपनी अर्जी की स्थिति पूछने भर से आपको अपना पासपोर्ट या राशन कार्ड मिल जाता है. कई मामलों में, सड़कों की मरम्मत हो जाती है जैसे ही पिछली कुछ मरम्मतों पर खर्च हुई राशि के बारे में पूछा जाता है. इस तरह, सरकार से सूचना मांगना व प्रश्न पूछना एक महत्वपूर्ण चरण है, जो अपने आप में कई मामलों में पूर्ण है.

लेकिन मानिये यदि आपने आरटीआई से किसी भ्रष्टाचार या गलत कार्य का पर्दाफ़ाश किया है, आप सतर्कता एजेंसियों, सीबीआई को शिकायत कर सकते हैं या एफ़आईआर भी करा सकते हैं. लेकिन देखा गया है कि सरकार दोषी के विरुद्ध बारम्बार शिकायतों के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं करती. यद्यपि कोई भी सतर्कता एजेंसियों पर शिकायत की स्थिति आरटीआई के तहत पूछकर दवाब अवश्य बना सकता है. हांलांकि गलत कार्यों का पर्दाफाश मीडिया के जरिए भी किया जा सकता है. हांलांकि दोषियों को दंड देने का अनुभव अधिक उत्साहजनक है. लेकिन एक बात पक्की है कि इस प्रकार सूचनाएं मांगना और गलत कामों का पर्दाफाश करना भविष्य को संवारता है. अधिकारियों को स्पष्ट सन्देश मिलता है कि उस क्षेत्र के लोग अधिक सावधान हो गए हैं और भविष्य में इस प्रकार की कोई गलती पूर्व की भांति छुपी नहीं रहेगी. इसलिए उनके पकडे जाने का जोखिम बढ जाता है.

क्या लोगों को निशाना बनाया गया है जिन्होंने आरटीआई का प्रयोग किया व भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया?

हाँ, ऐसे कुछ उदाहरण हैं जिनमें लोगों को शारीरिक हानि पहुंचाई गयी जब उन्होंने भ्रष्टाचार का बड़े पैमाने पर पर्दाफाश किया. लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रार्थी को हमेशा ऐसा भय झेलना होगा. अपनी शिकायत की स्थिति या अन्य समरूपी मामलों की जानकारी लेने के लिए अर्जी लगाने का अर्थ प्रतिकार निमंत्रित करना नहीं है. ऐसा तभी होता है जब सूचना नौकरशाह- ठेकेदार गठजोड़ या किसी प्रकार के माफ़िया का पर्दाफाश कर सकती हो कि प्रतिकार की सम्भावना हो.

तब मैं आरटीआई का प्रयोग क्यों करुँ?

पूरा तंत्र इतना सड- गल चुका है कि यदि हम सभी अकेले या मिलकर अपना प्रयत्न नहीं करेंगे, यह कभी नहीं सुधरेगा. यदि हम ऐसा नहीं करेंगे, तो कौन करेगा? हमें करना है. लेकिन हमें ऐसा रणनीति से व जोखिम को कम करके करना होगा. व अनुभव से, कुछ रणनीतियां व सुरक्षाएं उपलब्ध हैं.

क्या सरकार के पास आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ जायेगी और यह सरकारी तंत्र को जाम नहीं कर देगी?

ये डर काल्पनिक हैं. 65 से अधिक देशों में आरटीआई कानून हैं. संसद में पारित किए जाने से पूर्व भारत में भी 9 राज्यों में आरटीआई कानून थे. इन में से किसी सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आई. ऐसे डर इस कल्पना से बनते हैं कि लोगों के पास करने को कुछ नहीं है व वे बिलकुल खाली हैं. आरटीआई अर्ज़ी डालने व ध्यान रखने में समय लगता है, मेहनत व संसाधन लगते हैं.

आईये कुछ आंकडे लें. दिल्ली में, 60 से अधिक महीनों में 120 विभागों में 14000 अर्जियां दाखिल हुईं. इसका अर्थ हुआ कि 2 से कम अर्जियां प्रति विभाग प्रति माह. क्या हम कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ गई? तेज रोशनी में, यूएस सरकार को 2003- 04 के दौरान आरटीआई अधिनियम के तहत 3.2 मिलियन अर्जियां प्राप्त हुईं. यह उस तथ्य के बावजूद है कि भारत से उलट, यूएस सरकार की अधिकतर सूचनाएं नेट पर उपलब्ध हैं और लोगों को अर्जियां दाखिल करने की कम आवश्यकता होनी चाहिए. लेकिन यूएस सरकार आरटीआई अधिनियम को समाप्त करने का विचार नहीं कर रही. इसके उलट वे अधिकाधिक संसाधनों को इसे लागू करने में जुटा रहे हैं. इसी वर्ष, उन्होंने 32 मिलियन यूएस डॉलर इसके क्रियान्वयन में खर्च किये.

क्या आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में अत्यधिक संसाधन खर्च नहीं होंगे?

आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में खर्च किये गए संसाधन सही खर्च होंगे. यूएस जैसे अधिकांश देशों ने यह पाया है व वे अपनी सरकारों को पारदर्शी बनाने पर अत्यधिक संसाधन खर्च कर रहे हैं. पहला, आरटीआई पर खर्च लागत उसी वर्ष पुनः उस धन से प्राप्त हो जाती है जो सरकार भ्रष्टाचार व गलत कार्यों में कमी से बचा लेती है. उदहारण के लिए, इस बात के ठोस प्रमाण हैं कि कैसे आरटीआई के वृहद् प्रयोग से राजस्थान के सूखा राहत कार्यक्रम और दिल्ली की जन वितरण प्रणाली की अनियमितताएं कम हो पायीं.

दूसरा, आरटीआई लोकतंत्र के लिए बहुत जरुरी है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है. जनता की सरकार में भागीदारी से पहले जरुरी है कि वे पहले जानें कि क्या हो रहा है. इसलिए, जिस प्रकार हम संसद के चलने पर होने वाले खर्च को आवश्यक मानते हैं, आरटीआई पर होने वाले खर्च को भी जरुरी माना जाये.

लेकिन प्राय
    लोग निजी मामले सुलझाने के लिए अर्जियां देते हैं?


जैसा कि ऊपर दिया गया है, यह केवल जनता में सच लेकर आता है. यह कोई सूचना उत्पन्न नहीं करता. सच छुपाने या उस पर पर्दा डालने का कोई प्रयास समाज के उत्तम हित में नहीं हो सकता. किसी लाभदायक उद्देश्य की प्राप्ति से अधिक, गोपनीयता को बढावा देना भ्रष्टाचार और गलत कामों को बढावा देगा. इसलिए, हमारे सभी प्रयास सरकार को पूर्णतः पारदर्शी बनाने के होने चाहिए. हांलांकि, यदि कोई किसी को आगे ब्लैकमेल करता है, कानून में इससे निपटने के प्रचुर प्रावधान हैं. दूसरा, आरटीआई अधिनियम के अनुच्छेद 8 के तहत कई बचाव भी हैं. यह कहता है, कि कोई सूचना जो किसी के निजी मामलों से सम्बंधित है व इसका जनहित से कोई लेना- देना नहीं है को प्रकट नहीं किया जायेगा. इसलिए, मौजूदा कानूनों में लोगों के वास्तविक उद्देश्यों से निपटने के पर्याप्त प्रावधान हैं.

लोगों को ओछी/ तुच्छ अर्जियां दाखिल करने से कैसे बचाया जाए?

कोई अर्ज़ी ओछी/ तुच्छ नहीं होती. ओछा/ तुच्छ क्या है? मेरा पानी का रुका हुआ कनेक्शन मेरे लिए सबसे संकटपूर्ण हो सकता है, लेकिन एक नौकरशाह के लिए यह ओछा/ तुच्छ हो सकता है. नौकरशाही में निहित कुछ स्वार्थों ने इस ओछी/ तुच्छ अर्जियों के दलदल को बढाया है. वर्तमान में, आरटीआई अधिनियम किसी भी अर्ज़ी को इस आधार पर निरस्त करने की इजाज़त नहीं देता कि वो ओछी/ तुच्छ थी. यदि ऐसा हो, प्रत्येक पीआईओ हर दूसरी अर्ज़ी को ओछी/ तुच्छ बताकर निरस्त कर देगा. यह आरटीआई के लिए मृत समाधि के समान होगा.




विशाल जानकारी मांगने वाली अर्जियां रद्द कर देनी चाहिए?

यदि मैं कुछ जानकारी चाहता हूँ, जो एक लाख पृष्ठों में आती है, मैं ऐसा तभी करूँगा जब मुझे इसकी आवश्यकता होगी क्योंकि मुझे उसके लिए 2 लाख रुपयों का भुगतान करना होगा. यह एक स्वतः ही हतोत्साह करने वाला उपाय है. यदि अर्ज़ी इस आधार पर रद्द कर दी गयी, तो प्रार्थी इसे तोड़कर प्रत्येक अर्ज़ी में 100 पृष्ठ मांगते हुए 1000 अर्जियां बना लेगा, जिससे किसी का भी लाभ नहीं होगा. इसलिए, इस कारण अर्जियां रद्द नहीं होनी चाहिए कि:

रविवार, 7 अगस्त 2011

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

(2005 का अधिनियम संख्यांक 22)

(15 जून 2005)

प्रत्येक लोक प्राधिकारी के कार्यकरण में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के संवर्धन के लिए, लोक प्राधिकारियों के नियंत्रणाधीन सूचना तक पहुंच सूनिश्चित करने के लिए नागरिकों के सूचना के अधिकार की व्यावहारिक शासन पद्धति स्थापित करने, एक केन्द्रीय सूचना आयोग तथा राज्य सूचना आयोग का गठन करने और उनसे स॔बंधित या उनसे आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियम



भारत के संविधान ने लोक तंत्रात्मक गनराज्य की स्थापना की है;

और लोकतंत्र शिक्षित नागरिक वर्ग तथा ऐसी सूचना की पारदर्शिता की अपेक्षा करता है, जो उसके कार्यकरण तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भी और सरकारों तथा उनके परिकरणों को शासन के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिए अनिवार्य है;

और वास्तविक व्यवहार में सूचना के प्रकटन से संभवत: अन्य लोक हितों, जिनके अंतर्गत सरकारों के दक्ष प्रचालन, समिती राज्य वित्तिय संसाधनों के अधिकतम उपयोग और संवेदनशील सूचना की गोपनीयता को बनाए रखना भी है, के साथ विरोध हो सकता है;

अत: अब यह समीचीन है ऐसे नागरिकों को, कतिपय सूचना देने के लिए, जो उसे पाने के इच्छुक है, उपब॔ध किया जाए;

भारत गणराज्य के छप्पनवे वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप से यह अधिनियम हो:





प्रारम्भिक

1.       (1) इस अधिनियम का संक्षिपत नाम सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 है।

(2) इसका विस्तार जम्मू- कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है।




धारा 3. सूचना का अधिकार

इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार होगा।

टिप्पणी

 धारा 3 सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार प्रदान करती है, लेकिन स अधिनियम के अन्य उपबंधो के अधीन रहते हुए।

सूचना का अधिकार एक महत्वपूर्ण अधिकार है। संविधान में भी इस अधिकार की पुष्टि की गई है। इसे अनुच्छेद 19 (1) (क) के अन्तर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार तथा अनुच्छेद 21  के अन्तर्गत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार का एक अंग माना गया है।

पीपुल्स युनियन फाँर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन आफ इण्डिया के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा सूचना के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के अन्तर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार का एक अंग माना गया है।

सी प्रकार प्रभुदत्त बनाम युनियन आफ इण्डिया के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि – पत्रकार को बंदियों एवं कैदियों से साक्षात्कार करने तथा सूचना प्राप्त करने का अधिकार है यदि बंदी एवं कैदी स्वेच्छा से साक्षात्कार के लिए तैयार हो। न्यायालय ने कहा- संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क)  के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। इसमें प्रेस की स्वतंत्रता भी निहीत है। वह प्रेस ही है जो व्यक्ति के विचारों तक जन साधारण तक पहुँचाता है। बंदियों एवं कैदियों को भी स स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। व्यक्ति के मूल अधिकारों को जेल की दीवारों से बाहर नहीं किया जा सकता।

ठिक ऐसे ही विचार एम. हसन बनाम गनर्नमेन्ट अफ आन्ध्रप्रदेश के मामले में अभिव्यक्त किए गए है।

इस प्रकार सूचना के अधिकार को व्यक्ति का मूल अधिकार माना गया है।



4. लोक प्राधिकारियों की बाध्यताएं

1.    प्रत्येक लोक प्राधिकारी -

(क)  सम्यक रूप से सूचीपत्रित और अनुक्रमणिकाबद्ध अपने सभी अभिलेखों को किसी ऐसी रीति और रूप में रखेगा, जो इस अधिनियम के अधीन सूचना के अधिकार को सूकर बनाता है और सुनिश्चित करेगा कि ऐसे सभ अभिलेख जो कंप्यूटरीकृत किए जाने के लिए समुचित है, युक्तियुक्त समय के भीतर है और संसाधनों की उपलभ्यता के अधीन रहते हुए है, कंप्युटरीकृत और विभिन्न प्रणालियों पर संपूर्ण देश में नेटवर्क के माध्यम से संबद्ध है जिससे कि ऐसे अभिलेख तक पहुंच को सूकर बनाया जा सके;

(ख)  इस अधिनियम के अधिनियमन से एक सौ बीस दिन के भीतर-

i.        अपने संगठन की विशिष्टियां, कृत्य और कर्तव्य;

ii.        अपने  अधिकारीयों और कर्मचारीयों की शक्तियाँ और कर्तव्य;

iii.         विनिश्चय करने की प्रक्रिया में पालन की जाने वाली प्रक्रिया जिसमें पर्यवेक्षण और उत्तरदायित्व के क्या माध्यम सम्मिलित है;

iv.        अपने कृत्यों के निर्वहन के लिए स्वयं द्वारा स्थापित मापमान;

v.        अपने द्वारा या अपने नियंत्रणाधीन धारित या अपने कर्मचारीयों द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन के लिए प्रयोग किये गये नियम, विनियम, अनुदेश, निर्देशिका और अभिलेख;

vi.         ऐसे दस्तावेजों के, जो उसके द्वारा धारित या उसके नियंत्रणाधीन है, प्रवर्गों का विवरण;

vii.         किसी व्यवस्था की विशिष्टीयाँ जो उसकी निती की संरचना या उसके कार्यान्वयन के संबंध में जनता के सदस्यों से परामर्श के लिए या उनके द्वारा अभ्यावेदन के लिए विदयमान है;

viii.         ऐसे बोर्डों, परिषदों, समितीयों व अन्य निकायों के विवरण जिनमें दो या अधिक व्यक्ति है, जिनका उसके भाग रूप में या इस बारे में सलाह देने के प्रयोजन के लिए गठन किया गया है कि क्या उन बोर्डों, परिषदों, समितीयों व अन्य निकायों की बैठकें जनता के लिए खुली होंगी या ऐसी बैठकों के कार्यवृत्त तक जनता की पहुंच होगी;

ix.         अपने अधिकारियों और कर्मचारियों की निर्देशिका;

x.         अपने प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी द्वारा प्राप्त मासिक पारश्रमिक जिसमें उसके विनियमों में यथा उपबंधित प्रतिकर की प्रणाली सम्मिलीत है ;

xi.        . सभी योजनाओं, प्रस्तावित व्ययोँ और किये गये संवितरणों पर रिपोर्टों की विशिष्टीयां उपदर्शित करते हुए अपने प्रत्येक अभिकरण को आबंटीत बजट ;

xii.         सहायिकी कार्यक्रमों के निष्पादन की रिती जिसमें आबंटीत राशि और ऐसे कार्यक्रमों के फायदाग्राहियों के ब्यौरे सम्मिलित है;

xiii.         अपने द्वारा अनुदत्त रियातों, अनुज्ञापत्रों या प्राधिकारों के प्राप्ति कर्ताओं की विशिष्टीयां;

xiv.         किसी इलेक्ट्रॉनिक रूप में सूचना के संबंध में ब्यौरे, जो उसको उपलब्ध हो या उसके द्वारा धारित हो;

xv.         सूचना अभिप्राप्त करने के लिए नागरिकों को उपलब्ध सुविधाओं की विशिष्टीयां, जिनके अन्तर्गत किसी पुस्तकालय या वाचन कक्ष के यदि लोक उपयोग के लिए अनुरक्षित हैं तो कार्यकरण घण्टे सम्मिलित हैं;

xvi.        लोक सूचना अधिकारीयों के नाम, पदनाम और अन्य विशिष्टीयां;

xvii.         ऐसी अन्य सूचना, जो विहित की जाए;

प्रकाशित करेगि और तत्पशचात इन प्रकाशनों को प्रत्येक वर्ष में अद्तन करेगा;

(ग)  महत्त्वपूर्ण नीतीयों की विरचना करते समय या ऐसी विनिश्चयों की घोषणा करते समय, जो जनता को प्रभावित करते हो, सभी सुसंगत तथ्यों को प्रकाशित करेगा;

(घ)  पर्भावित व्यक्तियों को अपने प्रशासनिक या न्यायिककल्प विनिश्चयों के लिए कारण उपलब्ध कराएगा।



2.       प्रत्येक लोक अधिकारी का निरंतर यह प्रयास होगा कि यह स्वप्रेरणा से संसूचना के विभिन्न साधनों के माध्यम से, जिसके अंतर्गत इंटरनेट भी है, नियमित अंतरालों पर जनता को उतनी सूचना उपलब्ध कराने के लिए उपधारा (1)  के खंड (ख)  की अपेक्षाओं के अनुसार उपाय करे, जिससे कि जनता को सूचना प्राप्त करने के लिए इसअधिनियम का कम से कम अवलम्ब हो।

3.    उपधारा (1) के प्रयोजन के लिए, प्रत्येक सूचना को विस्तृत रूप से और ऐसे प्ररूप और रीति में प्रसारिर किया जाएगा, जो जनता के लिए सहज रूप से पहुंच योग्य हो सके।

4.    सभी सामग्री को, उस क्षेत्र में लागत प्रभावशीलता, स्थानीय भाषा और संसूचना की अत्यंत प्रभावी पद्धती को ध्यान में रखते हुए, प्रसारित किया जाएगा तथा सूचना तक, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य सूचना अधिकारी के पास इलेक्ट्रानिक प्ररूप में संभव सीमा तक निःशुल्क या माध्यम की ऐसी लागत पर या ऐसी मुद्रण लागत कीमत पर, जो विहीत की जाए, सहज पहुंच होनी चाहिए।



स्पष्टीकरण=-  उपधारा (3)  या उपधारा (4)  के प्रयोजनों के लिए ‘प्रसारित’ से सूचना पट्टों, समाचारपत्रों, लोक उदघोषणाओं, मिडिया प्रसारणों, इंटरनेट या किसी अन्य युक्ति के माध्यम से जिसमें किसी लोक प्राधिकारी के कार्यालयों का निरीक्षण सम्मिलित है, जनता को सूचना की जानकारी देना या संसूचित कराना अभिप्रेत है।



टिप्पणी

 धारा 4 में लोक प्राधिकारियों की बाध्यताओं का उल्लेख किया गया है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि धारा 4 लोक प्राधिकारियों पर कतिपय बाध्यतायें अधिरोपित करती है। इन बाध्यताओं में से कुछ महत्त्वपूर्ण बाध्यताएं निम्नांकित है-

i.        सभी संगठनों की विशिष्टियों, अधिकारियों के अधिकारों एवं कर्तव्यों, उनके द्वारा अपनाई जानेवाली प्रक्रीया, निर्णय लेने में अनुपालन किए जाने वाले मानकों आदि का अभिलेख संधारित कराना, ताकि जनसाधारण की उन तक पहँच सुगम हो सके।

ii.        जन साधारण को प्रभावित करने वाले विनिश्चयों, नीतीयों आदि से संबंधित तथ्यों का अभिलेख तैयार करना।

iii.        नीतियों एवं विनिश्चयों की पृष्ठभूमि के कारण।

यह कुछ ऐसे अभिलेख एवं ऐसी बाध्यताएं है जो नैसर्गिक न्याया के सिध्दांतों काअनुसरण करने का मार्ग प्रशस्त करती है। ये लोकतांत्रिक मूल्यों को अग्रसर करने में भी सहायक बनती है। इन बाध्यताओं को समय समय पर प्रकाशित करने तथा उन्हें अद्यतन रखने का दायित्व भी लोक प्राधिकारियों पर अधिरोपित किया गया है।

कुल मिलाकर इन बाध्यताओं का मुख्य उद्देश्य अभिलेखों का सदैव तैयार रखना है ताकि कभी भी जनसाधारण की उन तक पहुँच सुगम एवं सुनिश्चित हो सके।



5. लोक सूचना अधिकारियों का पदनाम

1.    प्रत्येक लोक प्राधिकारी, इस अधिनियम के अधिनियमन के सौ दिन के भीतर उतने अधिकारीयों को, जितने इस अधिनियम के अधीन सूचना के लिए अनुरोध करने वाले व्यक्तियों को सूचना प्रदान करने के लिए आवश्यक हो, सभी प्रशासकीय एककों या उसके अधीन कार्यालयों, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारियों या राज्य सूचना अधिकारियों के रूप में अभिहित करेगा।

2.    उपधारा (1)  के उपबंधों पर प्रतिकुल प्रभाव डाले बिना, प्रत्क लोक प्राधिकारी, इस अधिनियम के अधिनियमन के सौ दिन के भीतर किसी अधिकारी को प्रत्येक उपमंडल स्तर या अन्य उप जिला स्तर पर इस अधिनियम के अधीन सूचना या अपीलों के लिए आवेदन प्राप्त करने और तुरंत उसे या धारा 19  की उपधारा (1)  के अधीन विनिर्दिष्ट वरिष्ठ अधिकारी या यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को अग्रेषित करने के लिए यथास्थिति, केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी या राज्य सहायक सूचना अधिकारी के रूप में पदाभिहित करेगाः

परंतु यह कि जहां सूचना या अपील के लिए कोई आवेदन यथास्थिति, किसी केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी या किसी राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी कोदिया जाता है, वहां धारा 7 की उपधारा (1)  के अधीन विनिर्दिष्ट उत्तर के लिए अवधि की संगणना करने में पांच दिन की अवधि जोड दी जाएगी।

3.    प्रत्यक लोक सूचना अधिकारी, सूचना की मांग करने वाले व्यक्तियों के अनुरोधों पर कार्यवाही करेगा और ऐसी सूचना की मांग करने वाले व्यक्तियों को युक्तियुक्त सहायता प्रदान करेगा

4.    यथास्थिति,  केन्द्रीय  लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी, ऐसे किसी अन्य अधिकारी की सहायता की मांग कर सकेगा, जिसे वह अपने कृत्यों के समुचित निर्वहन के लिड आवश्यक समझे।

5.    कोई अधिकारी, जिसकी उपधारा (4) के अधीन सहायता चाही गई है, उसकी सहायता चाहने वाले यथास्थिति,  केन्द्रीय  लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी को सभी सहायता प्रदान करेगा और इस अधिनियम के उपबंधों के किसी उल्लंघन के प्रयोजनों के लिए ऐसे अन्य अधिकारी को यथास्थिति, केन्द्रीय  लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी समझा जाएगा।

टिप्पणी

  धारा 5 लोक सूचना अधिकारियों के बारे में प्रावधान करती है। इन लोक सूचनि अधिकारियों का मुख्य कार्य सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन करने वाले व्यक्तियों को सूचना उपलब्ध कराने में सहायता प्रदान करना होगा।

यह लोक सूचना अधिकारी दो वर्ग के होंगे-

a)    केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी; तथा

b)    राज्य लोक सूचना अधिकारी

उप मण्डल एवं उप जिला स्तर पर-

a)     केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी ;

b)     राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी वर्ग के व्यक्ति होंगे।

कार्य-   प्रत्येक लोक सूचना अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह सूचना की मांग करने वाले व्यक्ति की सुनवाई करे और सूचना उपलब्ध कराने में उनकी युक्तियुक्त सहायता करे।



सहायता-   केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी अपने कर्तव्यों के निर्वहन में अन्य अधिकारियों की सहायता की मांग कर सकेगा और ऐसी मांग की जाने पर ऐसे अधिकारी केन्द्रीय  लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी की सहायता करेंगे।

यह तथ्य कि याचिकाकर्ता द्वारा क्लर्क के पद के लिए डाक द्वारा उत्तरवादी बैंक को प्रार्थना पत्र निर्धारित तिथी तक प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए बैंक ने स पर विचार नहीं किया। इस संबंध में बैंक द्वारा याचिकाकर्ता को सूचित किया गया इस सूचना को याचिकाकर्ता ने चुनौती नहीं दी। यह निर्णय दिया गया कि वह सूचना के अधिकार के तहत क्लर्क के पद के संबंध में विवरण प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है।



6. सूचना अभिप्राप्त करने के लिए अनुरोध-

1.कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन कोई सूचना अभिप्राप्त करना चाहता है, लिखित में या इलेक्ट्रानिक युक्ति के माध्यम से अंग्रेजी या हिन्दी में या क्षेत्र की राजभाषा जिसमें आवेदन किया जा रहा है, ऐसी फीस के साथ, जो विहित की जाए,-



(क)  संबंधित लोक प्राधिकरण के यथास्थिति,  केन्द्रीय  लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी;

(ख) यथास्थिति,  केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी या  राज्य

सहायक लोक सूचना अधिकारी;

को, उसके द्वारा माँगी गई सूचना की विशष्टियां विनिर्दिष्ट करते हुए अनुरोध करेगा:

सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी अनुरोध करने वाले व्यक्ति को सभी युक्तियुक्त सहायता मौखिक रूप से देगा, जिससे कि उसे लेखबद्ध किया जा सके।



1.    सूचना के लिए अनुरोध करने वाले आवेदक से सूचना का अनुरोध करने वाले अनुरोध के लिए किसी कारण को या किसी अन्य व्यक्तिगत ब्यौरे को, सिवाय उसके जो उससे संपर्क करने के लिए आवश्यक हो, देने की अपेक्षा नहीं की जाएगी।

2.    जहां, किसी ऐसी सूचना के लिए अनुरोध करते हुए कोई आवेदन किसी लोक प्राधिकारी को किया जाता है,-

i.        जो किसी अन्य लोक प्राधिकारी द्वारा धारित की गई है; या

ii.        जिसकी विषय- वस्तु किसी अन्य लोक प्राधिकारी के कृत्यों से अधिक निकट रूप से संबंधित है,

वहां, वह लोक प्राधिकारी, जिसको ऐसा आवेदन किया जाता है, ऐसे आवेदन या उसके ऐसे भाग को, जो समुचित हो, उस अन्य लोक प्राधिकारी को अंतरित करेगा और ऐसे अतंरण के संबंध में आवेदक को तुरंत सूचना देगा:

परंतु यह कि उपधारा के अनुसरण में किसी आवेदन का अंतरण यथासाध्य शीघ्रता से किया जाएगा, किन्तु किसी भी दशा में आवेदन की प्राप्ति की तारीख से पांच दिनों के पश्चात नहीं किया जाएगा।

टिप्पणी

             धारा 6 के उपबंध अत्त महत्त्वपूर्ण है। ये सूचना प्राप्ति हेतु अनुरोध के बारे में प्रावधान करते हैं। इसके अनुसार सूचना प्राप्त करने के लिए इच्छुक व्यक्ति को इस आशय का एक लिखित आवेदन पत्र प्रस्तुत करना होगा या इलेक्ट्रानिक युक्ति के माध्यम से आवेदन करना होगा।

आवेदन हिन्दी, अंग्रेजी या क्षेत्रीय राजभाषा में किया जायेगा।



आवेदन किसे करना होगा-

आवेदन निम्नांकित में से किसी अधिकारी को किया जायेगा-

i.        केन्द्रीय  लोक सूचना अधिकारी

ii.         राज्य  लोक सूचना अधिकारी;

iii.         केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी

iv.         राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी।

यदि कोई आवेदन किसी ऐसे लोक प्राधिकारी को किया जाता है जो ऐसी सूचना धारण नहीं करता है, वहां ऐसा आवेदन पत्र उस लोक प्राधिकारी को अन्तरित कर दिया जाएगा, जो ऐसी सूचना धारण करता है। ऐसा अंतरण अधिकतम 5 दिन में कर दिया जाएगा तथा इस आशय की सूचना आवेदक को दी जायेगी।



आवेदन पत्र की अन्तर्वस्तुएं

    आवेदन पत्र में चाही गई सूचना की विशिष्टियों का उल्लेख किया जाएगा तथा निर्धारित


धारा 7.  अनुरोधों का निपटारा

1.    धारा 5 की उपधारा (2) के परंतुक या धारा 6 की उपधारा (3)  के परंतुक के अधीन रहते हुए, धारा 6 के अधीन अनुरोध के प्राप्त होने पर, यथास्थिति, किसी केन्द्रीय स लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी यथा संभव शीघ्रता से, और किसी भी दशा में अनुरोध की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर, ऐसी फीस के संदाय पर, जो विहीत की जाए, या तो सूचना उपलब्ध कराएगा या धारा 8 और धारा 9  में विनिर्दिष्ट कारणों में ये किसी कारण से अनुरोध को अस्वीकार करेगा:

परंतु जहां मांगी गई जानकारी का संबंध किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से है, वहां वह अनुरोध प्राप्त होने के अडतालीस घंटे के भीतर उपलब्ध कराई जाएगी।



2.    यदि लोक सूचना अधिकारी, उपधारा (1)  के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर सूचना के लिए अनुरोध पर विनिश्चय करने में असफल रहता है, यथास्थिति, किसी केन्द्रीय  लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने अनुरोध को नामंजूर कर दिया।

3.     जहां, सूचना उपलब्ध कराने की लागत के रूप में किसी और फीस के संदाय पर सूचना उपलब्ध कराने का विनिश्चय किया जाता है, वहां यथास्थिति, किसी केन्द्रीय  लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी अनुरोध करने वाले व्यक्ति को,

(क)  उपधारा (1)  के अधीन विहीत फीस के अनुसरण में रकम निकालने के लिए की गई संगणनाओं के साथ उसके द्वारा यथाअवधारित सूचना उपलब्ध कराने की लागत के रूप में और फिस के ब्यौरे देते हुए उससे उस फीस को जमा करने का अनुरोध करते हुए कोई संसूचना भेजेगा और उक्त संसूचना के प्रेषण और फिस के संदाय के बीच मध्यवर्ती अवधि को उस धारा में निर्दिष्ट तीस दिन की अवधि की संगणना करने के प्रोयजन के लिए अपवर्जित किया जाएगा;

(ख) प्रभारित फिस की राशि या उपलब्ध कराई गई पहुंच के प्ररूप के बारे में, जिसके अंतर्गत अपील प्राधिकारी की विशिष्टियां, समय-सीमा, प्रक्रिया और कोई अन्य प्ररूप भी है, विनिश्चय के पुनर्विलोकन के संबंध में उसके अधिकार से संबंधित सूचना देते हुए, कोई संसूचना भेजेगा।



4.    जहां, इस अधिनियम के अधीन अभिलेख या उसके किसी भाग तक पहुंच अपेक्षित है और ऐसा व्यक्ति, जिसको पहुंच उपलब्ध कराई जाना है, संवेदनात्मक रूप से निःशक्त है, वहां यथास्थिति,  केन्द्रीय  लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी सूचना तक पहंच को समर्थ बनाने के लिए सहायता उपलब्ध कराएगा जिसमें निरीक्षण के लिए ऐसी सहायता कराना सम्मिलित है, जो समुचित हो।

5.    जहां, सूचना तक पहंच मुद्रीत या किसी इलेक्ट्रानिक प्ररूप में उपलब्ध कराई जानी है, वहां आवेदक, उपधारा (6)  के अधीन रहते हुए ऐसी फीस का संदाय करेगा, जो विहीत की जाए:

परंतु धारा 6  की उपधारा (1) और धारा 7 की उपधारा (1)  और उपधारा (5)  के अधीन विहीत फीस युक्तियुक्त होगी और ऐसे व्यक्तियों से, जो गरीबी की रेखा के नीचे है, कोई फिस प्रभारित नहीं की जाएगी, जैसा समूचित सरकार द्वारा अवधारित किया जाए।

6.    उपधारा (5)  में किसी बात के होते हुए भी, जहां कोई लोक प्राधिकारी उपधारा (1)  में विनिर्दिष्ट समय-सीमा का अनुपालन करने में असफल रहता है, वहां सूचना के लिए, अनुरोध करने वाले व्यक्ति कोप्रभार के बिना सूचना उपलब्ध कराई जाएगी।

7.    उपधारा (1)  के अधीन कोई विनिश्चय करने से पूर्व, यथास्थिति,  केन्द्रीय  लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी  धारा 11  के अधीन किसी तीसरे पक्षकार द्वारा किए गए अभ्यावेदन को ध्यान में रखेगा।

8.    जहां, किसी अनुरोध को उपधारा (2)  के अधीन अस्वीकृत किया गया समझा गया है, वहां लोक सूचना अधिकारी अनुरोध करने वाले व्यक्ति को,-

i.        ऐसी अस्वीकृति के कारण;

ii.        वह अवधि, जिसके भीतर ऐसी अस्विकृति के विरुद्ध कोई अपील की जा सकेगी; और

iii.        अपील प्राधिकारी की विशिष्टियां, संसूचित करेगा।

9.     किसी सूचना को साधारणतया उसी प्ररूप में उपलबर्ध कराया जाएगा, जिसमें उसे मांगा गया है, जब तक कि यह लोक प्राधिकार के संशोधनों को अननुपाती रूप से विचलित न करता हो या अमोल मालुसरे गत अभिलेख की सुरक्षा या संरक्षण के प्रतिकुल न हो।

टिप्पणी

  धारा 7  चाही गइ सूचना के आवेदनों / अनुरोधों के निपटान के बारे में प्रावधान करती है। इसके अनुसार-

(क)  सामान्य आवेदनों का निपटारा 30 दिनों में कर दिया जाना चाहिए अर्थात 30 दिनों में वांछित सूचना आवेदक को उपलब्ध करा दी जानी चाहिए।

(ख) यदि ऐसी सूचना किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित है, तो संबंधित आवेदन/ अनुरोध का निपटारा 48 घंटों में कर दिया जाना चाहिए।

उपरोक्त अवधि में आवेदन का निपटारा नहीं किए जाने का अभिप्राय यह होगा कि वह आवेदन नामंजूर कर दिया गया  है।

यदि सूचना उपलब्ध कराने के लिए और कोई शुल्क देय है तो ऐसा शुल्क जमा कराने हेतु आवेदक को कहा जायेगा।

यदि आवेदक किसी अभिलेख तक पहुँच के लिए निःशक्त है तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या  राज्य  लोक सूचना अधिकारी द्वारा पहुँच सुगम कराने में सहायता की जायेगी।



इन्क्वारी का आदेश-

 यदि किसी लोक प्राधिकारी द्वारा सूचना उपलब्ध करान से इन्कार किया जाता है अर्थात आवेदन को अस्वीकार किया जाता है तब ऐसा लोक सूचना अधिकारी आवेदक को निम्नांकित बातें संसूचित करेगा-

i.        आवेदन को अस्वीकार किए जाने के कारण;

ii.        अपील किए जाने की अवधि; तथा

iii.        अपील प्राधिकारी की विशिष्टियां

सामान्यतः सूचना उसी प्ररूप में उपलब्ध कराई जाएगी जिस प्ररूप में वे चाही गई है।



उत्तर-धारा 8 – सूचना के प्रकट किए जाने मे छूट

इस अधिनियम के अतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, इसमें अन्यथा उपबंधित के सिवाय, निम्नलिखित सूचना को प्रकट करने से छुट दी जाएगी, अर्थात-

(क)  सूचना जिसके प्रकटन से,

i.        भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीति वैज्ञानिक या आर्थिक हित विदेश से संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव पडता हो; या

ii.        किसी अपराध को करने का उद्दीपन होता हो;

(ख) सूचना, जिसके प्रकटन से किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा अभिव्यक्त रूप से निषिद्ध किया गया है या जिसके प्रकटन से न्यायालय का अवमान होता हो;

(ग)  सूचना जिसके प्रकटन से संसद या किसी राज्य के विधान –मंडल के विशेषाधिकार भंग हो संकेत हो;

(घ)  सूचना, जिसमें वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार गोपनीयता या बौद्धिक संपदा, सम्मिलित है, जिसके प्रकटन से किसी तीसरे पक्षकार की प्रतियोगी स्थिति को नुकसान होता है;

परंतु यह कि ऐसी सूचना को प्रकट किया जा सकेगा यदि लोक सूचना अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी सूचना का प्रकटन विस्तृत लोक हित समाविष्ट है;

(ड)  किसी व्यक्ति को उसकी वैश्वासिक नातेदारी में उपलब्ध सूचनाः

परंतु यह कि ऐसी सूचना को प्रकट किया जा सकेगा यदि लोक सूचना अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी सूचना के प्रकटन में विस्तृत लोक हित में आवश्यक है;

(च)  किसी विदेशी सरकार से विश्वास में प्राप्त सूचना;

(छ)  सूचना, जिसके प्रकट करने से किसी व्यक्ति के जीवन या शारिरीक सुरक्षा के लिए या सूचना के संसाधन की पहचान करने में या विश्वास में दी गई सहायता या सुरक्षा प्रयोजनों के लिए खतरा होगा;

(ज) सूचना, जिसके प्रकट करने से अन्वेषण या अपराधियों के गिरफ्तार करने या अभियोजन की क्रिया में अडचन पडेगी;

(झ)  मंत्रिमंडल के कागजपत्र, जिसमें मंत्रिपरिषद के सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार –विमर्श के अभिलेख सम्मिलित है;

परंतुयह कि मंत्रिपरिषद के विनिश्चय उनके कारण तथा यह सामग्री जिसके आधार पर विनिश्चय किए गए थे, विनिश्चय किए जाने और विषय को पूरा या समाप्त होने के पश्चात जनता को उपलब्ध कराया जाएगा;

परंतु यह और कि वे विषय जो इस धारा में सूचीबद्ध छूटों के अंतर्गत आते है, प्रकट नहीं किए जाएंगें।

(त्र)  सूचना, जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है, जिसके प्रकट करने का किसी लोक क्रियाकलाप या हित से संबंध नहीं है या जिससे व्यष्टि की एकिन्तता पर अनावश्यक अतिक्रमण नहीं होता है;

परंतु यह कि ऐसी सूचना प्रकट की जा सकेगी यदि यथास्थिति, सूचना अधिकार या अपील प्राधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी सूचना का प्रकटन विस्तृत लोक हित में न्यायोचित है।

1)    ऐसी सूचना से, जिसको, यथास्थिति संसद या किसी राज्य विधान मंडल को देने से इंकार नहीं किया जा सकता है, किसी व्यक्ति को इंकार नहीं किया जाएगा।



2)    कोई लोक प्राधिकारी, उपधारा (1)  में विनिर्दिष्ट छूटों में किसी बात के होते हुए भी, सूचना तक पहुंच को अनुज्ञात कर सकेगा, यदि सूचना के प्रकटन में लोक हित, लोक प्राधिकारी को नुकसान से अधिक है।

3)      उपधारा (1)  के खण्ड (क)  या खण्ड (झ) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी घटना, वृत्तांत या विषय से संबंधित कोई सूचना जो उस तारीख से जिसको धारा 6 के अधीन कोई अनुरोध किया जाता है, 20 वर्ष पूर्व हुई है या होती है, उस धारा के अधीन अनुरोध करने वाले व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाएगीः

परंतु यह कि जहां उस तारीख से जिसको 20 वर्ष की उपलब्धि को संगणित किया जाना है,

उदभुत कोई अमोल मालुसरे  उत्पन्न होता है, वहां केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अन्तिम होगा।



टिप्पणी

अधिनीयम कि धारा 8 अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसमें कतिपय ऐसी सूचनाओं का उल्लेख किया गया है जिन्हें प्रकट करने अर्थात उपलब्ध कराने से इन्कार किया जा सकेगा। ऐसी सूचनाएं निम्नलिखित है-

(क) भारत की प्रमुख और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, आर्थिक हित आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पडता हो;

(ख) किसी अपराध का उद्दीपन incitement होता हो;

(ग) जिससे न्यायालय का अवमान (contempt) होता हो;

(घ) जिससे संसद या राज्य विधान मण्डल के विशेषाधिकार भंग होते हो;

(ड) जिससे तीसरे पक्षकार की प्रतियोगी स्थिति को नुकसान होता हो;

(च) वैश्वासिक नातेदारी में उपलब्ध सूचना;

(छ)  विदेशी सरकार से विश्वास में प्राप्त सूचना;

(ज) जिससे व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो जाए;

(झ) जिससे अन्वेषण, अपराधियं की गिरफ्तारी या अभियोजन की क्रीया में अडचन पैदा हो जाए;

(त्र) मंत्रिमण्डल के कागजपत्र, जिसमें मंत्रिपरिषद् के सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार – विमर्श के अभिलेख सम्मिलित है, आदि।



लेकिन जो सूचनाएं संसद या राज्य विधान मण्डलों को दी सकती हैं, ये किसी व्यक्ति को भी दी ज सकती सकेगी। ऐसी सूचनाएं किसी व्यक्ति को देने से इन्कार नहीं किया जा सकेगा।



फिर लोक प्राधिकारी द्वारा किसी सूचना तक पहुँच को अनुज्ञात किया जा सकेगा, यदि ऐसी सूचना के प्रकटन में लोक प्राधिकारी को होने नुकसान से लोक हित अधिक हो अर्थात सूचनाओं के प्रकटन में लोक हित को अधिक महत्त्व दिया जाएगा।



धारा 9. कतिपय मामलों में पहुंच अस्वीकृत करने के आधार

धारा 8 के उपबन्धों पर प्रतिकुल प्रभाव डाले बिना, कोई यथास्थाति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, सूचना के किसी अनुरोध को अस्वीकार कर सकेगा जहां पहुंच उपलब्ध कराने के ऐसे अनुरोध में राज्य से भिन्न किसी व्यक्ति के विद्यमान प्रतिलिप्यधिकार का उल्लंघन अन्तर्वलित है।



टिप्पणी

   धारा 9  में यह कहा गया है कि किसी ऐसी सूचना के अनुरोध को भी इन्कार /अस्वीकार किया जा सकेगा जिसके प्रकटन से राज्य से भिन्न किसी व्यक्ति के विद्यमान प्रतिलिप्याधिकारों का उल्लंघन


  धारा 10. पृथक्करणीयता

1)    जहां सूचना तक पहुंच के अनुरोध को इस आधार पर अस्वीकार किया जाता है कि यह ऐसी सूचना के संबंध में है जो प्रकट किए जाने से छूट प्राप्त है वहां इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, अभिलेख के उस भाग तक पहुंच अनुदत्त की जा सकेगी जिसमें कोई ऐसी सूचना अन्तर्विष्ट नहीं है, जो इस अधिनियम के अधीन प्रकट किए जाने से छूट प्राप्त है और जो ऐसे भाग से, जिसमें छूट प्रापत सूचना अन्तर्विष्ट है, उचित रूपसे पृथक की जा सकती है।

2)    जहां उपधारा  (1) के अधीन अभिलेख के किसी भाग तक पहुंच अनुदत्त की जाता है, वहाँ यथास्थिति केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य सूचना अधिकारी निम्नलिखित सूचना देते हुए, आवेदक को एक सूचना देगा-

(क)  अनुरोध किए गए अभिलेख का केवल एक भाग ही, उस अभिलेख से उस सूचना को जो प्रकटन से छूट प्राप्त है पृथक करने के पश्चात उपलब्ध कराया जा रहा है;

(ख) विनिश्चय के कारण जिनके अंतर्गत तथ्य के किसी महत्त्वपूर्ण अमोल मालुसरे  पर उस सामग्री का निर्देश देते हुए देश पर वे विनिश्चय आधारित थे कोई निष्कर्ष भी है;

(ग)  विनिश्चय करने वाले व्यक्ति का नाम और पदनाम;

(घ)  उसके द्वारा संगणित फीस के ब्यौरे और फिस की वह रकम जिसकी आवेदक से निक्षेप करने की अपेक्षा है; और

(ड) सूचना के भाग के अप्रकटन के बाबत विनिश्चय के पुनर्विलोकन के संबंध में उसके अधिकार, प्रभारित फिस की रकम या उपलब्ध कराई गई पहुंच का रूप जिसके अन्तर्गत यथास्थिति, धारा 19 की उपधारा (1)  के अधीन विनिर्दीष्ट वरिष्ठ अधिकारी या केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य सूचना अधिकारी की विशिष्टियां, समय सीमा, प्रक्रीया और कोई अन्य रूप भी है।



टिप्पणी

 धारा  10 सूचनाओं की पृथक्करणीयता के बारे में प्रावधान करती है। इससे अभिप्राय यह है कि जहां किसी व्यक्ति द्वारा सूचना चाही जाती है जिसका कुछ भाग ऐसा हो जो धारा 8 के अंतर्गत छूट में आता हो अर्थात जो प्रकट नहीं की जा सकती हो, लेकिन, शेष प्रकट की जा सकती हो, वहां ऐसी सूचना तक पहुंच अनुज्ञात कर दी जायेगी बशर्ते कि उन्हें पृथक किया जा सकता हो।

इस तथ्य से आवेदक को अवगत करा दिया जाएगा। इस धारा का मुख्य उद्देश्य यह है कि किसी व्यक्ति को छूट प्राप्त सूचना के नाम पर अन्य सूचनाओं से वंचित नहीं किया जाए।

धारा 11. तृतीय पक्षकार सूचना

1)    जहां, किसी यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य सूचना अधिकारी का, इस अधिनियम के अधीन किए गए अनुरोध पर कोई ऐसी सूचना या अभिलेख या उसके किसी भाग को प्रकट करने का आशय है, जो किसी पर –व्यक्ति से संबंधित है या उसके द्वारा प्रदाय किया गया है उस पर-व्यक्ति द्वारा उसे गोपनीय माना गया है, वहां यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य सूचना अधिकारी अनुरोध प्राप्त होने से पांच दिन के भीतर ऐसे पर-व्यक्ति को अनुरोध की और इस तथ्य की लिखित रूप में सूचना देगा कि यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य सूचना अधिकारी का उक्त सूचना या अभिलेख या उसके किसी भाग को प्रकट करने का आसय है, और इस बाबत कि सूचना प्रकट की जानी चाहिए या नहीं, लिखित में या मौखिक रूप से निवेदन करने के लिए पर-व्यक्ति को आमंत्रित करेगा तथा सूचना के प्रकटन की बात कोई विनिश्चय करते समय पर-व्यक्ति के ऐसे निवेदन को ध्यान में रखा जाएगाः

परंतु विधि द्वारा संरक्षित व्यापार या वाणिज्यिक गुप्त बातों की दशा में के सिवाय, यदि ऐसे प्रकटन में लोकहित, ऐसे पर-व्यक्ति के हितों की किसी संभावित अपहानि या क्षति से अधिक महत्त्वपूर्ण है तो प्रकटन अनुज्ञात किया जा सकेगा।

2)    जहां उपधारा (1)  के अधीन यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य सूचना अधिकारी द्वारा पर-व्यक्ति पर किसी सूचना या अभिलेख या उसके किसी भाग की बाबत कोई सूचना तामील की जाती है, वहां ऐसे पर-व्यक्ति को, ऐसी सूचना की प्राप्ति की तारीख से दस दिन के भीतर, प्रस्तावित प्रकटन के विरूद्ध अभ्यावेदन करने का अवसर दिया जाएगा।

3)   धारा 7 में किसी बात के होते हुए भी, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य सूचना अधिकारी धारा  6 के अधीन अनुरोध प्राप्त होने के पश्चात चालीस दिन के भीतर, यदि पर –व्यक्ति को उपधारा (2)  के अधीन अभ्यावेदन करने का अवसर दे दिया गया है, तो इस बारे में विनिश्चय करेगा कि उक्त सूचना या अभिलेख या उसके भाग का प्रकटन किया जाए या नहीं और अपने विनिश्चय की सूचना लिखित में पर –व्यक्ति को देगा।

4)   उपधारा (3)  के अधीन दी गई सूचना में यह कथन भी सम्मिलित होगा कि वह पर –व्यक्ति ,जिसे सूचना दी गई है, धारा 19 के अधीन उक्त विनिश्चय के विरूद्ध अपील करने का हकदार है।

टिप्पणी

 धारा 11 यह कहती है कि जहां चाही गई सूचना ऐसी हो जो किसी पर-व्यक्ति से संबंधित हो या ऐसे पर-व्यक्ति द्वारा वह प्रदाय की गई हो या वह पर-व्यक्ति ऐसी सूचना को गोपनीय मानता हो, तब केन्द्रीय लेक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा इस आशय की लिखित सूचना दी जाएगी कि-

(क)  किसी व्यक्ति द्वारा अमुक सूचना चाही गई है;

(ख)  ऐसी सूचना उस पर-व्यक्ति से संबंधित है या उसके द्वारा प्रदाय की गई है या वह उसे गोपनीय मानता है;

(ग) ऐसी सूचना को चाहे गए व्यक्ति को उपलब्ध कराने का उस अधिकारी का आशय है; वह व्यक्ति सूचित करे कि ऐसी सूचना चाहे गए व्यक्ति को दी जाए या नहीं। पर व्यक्ति इसका जो भी उत्तर देता है उसे ऐसे आवेदन का निपटारा करते समय ध्यान में रखा जाएगा।

यदि सूचना को प्रकट किया जाना लोक हित में अधिक है और पर –व्यक्ति हो होने वाली हानि अपेक्षाकृत कम है तो ऐसी सूचना के प्रकटन की अनुमति दे दी जाएगी।

पर-व्यक्ति से सूचना का प्रकटन चाहे जाने पर ऐसा पर-व्यक्ति सूचना की तामील से 10  दिन के भीतर अपना अभ्यावदेन प्रस्तुत कर सकेगा।

सूचना चाहने वाले व्यक्ति के अनुरोध के पश्चात 40 दिन के भीतर ऐसे अनुरोध पर निर्णय लिया जाना अपेक्षित है कि वांछित सुचना का प्रकटन किया जाए या नहीं

यदि सूचना का प्रकटन किया जाता है तो पर-व्यक्ति द्वारा ऐसे विनिश्चय के विरूद्ध अपील की जा
सकेगी।


केन्द्रीय सूचना आयोग का गठन

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 धारा – 12. (1)  केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा केन्द्रीय सूचना आयोग के नाम से ज्ञात एक निकाय का गठन करेगी, जो ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन करेगा, जो उसे इस अधिनियम के अधीन सौंपे जाएं।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 धारा – 12. (2) केन्द्रीय सूचना आयोग निम्नलिखित से मिलकर बनेगा-

(क) केन्द्रीय सूचना आयुक्त; और

(ख) दस से अनधिक उतनी संख्या में केन्द्रीय सूचना आयुक्त, तने आवश्यक समझे जाएं।



सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 धारा – 12. (3) मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा निम्निखित से मिलकर बनी समिति की सिफारिश की जाएगी-

i.        प्रधानमंत्री, जो समिति का अध्यक्ष होगा।

ii.        लोकसभा में विपक्ष का नेता; और

iii.        प्रधानमंत्री द्वारा नाम निर्दिष्ट संध मंत्रिमंडल का एक मंत्री।

स्पष्टीकरण – शंकाओं के निवारण के लिए यह घोषित किया जाता है कि जहां लोक सभा में विपक्ष के नेता को उस रूप में मान्यता नहीं दी गई है, वहां लोक सभा में सरकार के विपक्षी एकल सबसे बडे समूह के नेता को विपक्ष का नेता समझा जाएगा।



सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 धारा – 12. (4) केन्द्रीय सूचना आयोग के कार्यों का सादारण अधीक्षण, निदेशन और प्रबंधन, मुख्य सूचना आयुक्त से निहीत होगा, जिसकी सहायता सूचना आयुक्तों द्वारा की जाएगी और वह ऐसी सभी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे सभी कार्य और बातें कर सकेगा, जिनका केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा स्वतंत्र रूप से इस अधिनियम के अधीन किसी अन्य प्राधिकारी के निदेशों के अधीन रहे बिना प्रयोग किया जा सकता है या जो की जा सकती है।



सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 धारा – 12. (5) मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त विधि, विज्ञान ओर प्रौद्यगिकी, समाज सेवा, प्रबंध, पत्रकरिता, जनसंपर्क माध्यम या प्रशासन तथा शासन का व्यापक ज्ञान और अनुभव रखने वाले जनजीवन में प्रख्यात व्यक्ति होंगे।



सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 धारा – 12. (6) मुख्य सूचना आयुक्त या कोई सूचना आयुक्त, यथास्थिति, संसद का सदस्य या किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्रों के विधान-मंडल का सदस्य नहीं होगा या कोई अन्य लाभ का पद धारित नहीं करेगा या किसी राजनैतिक दल से संबद्ध नहीं होगा अथवा कोई कारबार नहीं करेगा या कोई वृत्ति नहीं करेगा।



सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 धारा – 12. (7) केन्द्रीय सूचना आयोग का मुख्यालय, दिल्ली में होगा और केन्द्रीय सूचना आयोग, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, भारत मेंअन्य स्थानों पर कार्यालय स्थापित कर सकेगा।

टिप्पणी

              इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग तथा कृत्यों का निर्वहन करने के लिए धारा 12 में एक केन्द्रीय सूचना आयोग का गठन का प्रावधान किया गया है। आयोग का गठन शासकीय राजपत्र में अधिसूचना जारी करते हुए केन्द्रीय सरकार द्वारा किया जाएगा।

गठन-

   केन्द्रीय सूचना आयोग का गठन निम्नांकित से मिलकर होगा-

1.    मुख्य सूचना आयुक्त एक; तथा

2.    केन्द्रीय सूचना आयुक्त (अधिक तम दस)

चयन समिति-

           मुख्य सूचना आयुक्त तथा केन्द्रीय सूचना उपायक्तों की नियुक्ति हेतु नामों की सिफारिश एक समिति द्वारा की जाएगी, जिसमें निम्नांकित सदसय होंगे-

(क) प्रधानमंत्री                                          अध्यक्ष

(ख) लोक सभा में विपक्ष का नेता                     सदस्य

(ग)  प्रधानमंत्री द्वारा नामनिर्देष्ट केन्द्रीय             सदस्य

मंत्रीमण्डल का एक मंत्री

अर्हताएं-

           केन्द्रीय सूचना आयुक्त तथा सूचना आयुक्त के पदों पर ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त किया जाएगा जो निम्नांकित का व्यापक ज्ञान एवं अनुभव रखने वाले होँगे-

1)    विधि;

2)    विज्ञान और प्रौद्योगिकी;

3)    समाज सेवा;

4)    प्रबंधन;

5)    पत्रकारिता;

6)    जन माध्यम;

7)    प्रशासन; अथवा

8)    शासन।

मर्यादाएं-

             उपधारा (6)  के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त अथवा सूचना आयुक्त-

(क)  संसद या राज्य विधान मण्डल के सदस्य नहीं होगे;

(ख)  लाभ का कोई अन्य पद धारण नहीं कर सकेंगे;

(ग)  किसी राजनितिक दल से सम्बद्ध नहीं होंगे; अथवा

(घ)  कोई कारबार या वृत्ति नहीं कर सकेंगे।



कार्यालय-

केन्द्रीय सूचना आयोग का मुख्यालय दिल्ली में होगा। केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से आयोग द्वारा भारत में अन्य स्थानों पर अपने कार्यालय स्थापित किए जा सकेंगे।





13.  के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त पदावधि और सेवा शर्ते निम्नानूसार होगीं -

1)    सूचना आयुक्त, उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, पांच वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेगा और पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा:

पंरतु यह कि कोई मुख्य सूचना आयुक्त पैसठ वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात उस रूप में पद धारण नहीं करेगा।



2)    प्रत्येक सूचना आयुक्त, उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है पांच वर्ष की अवधि के लिए या पैसंठ वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, इनमें से जो भी पूर्वतर हो पद धारण करेगा और एसे सूचना आयुक्त के रूप में पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा:

परंतु प्रत्येक सूचना आयुक्त, इस उपधारा के अधीन अपना पद रिक्त करने पर धारा 12 की उपधारा (3)  में विनिर्दिष्ट रीति से मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्त के लिए पात्र होगा;

परंतु यह और कि जां सूचना आयुक्त को मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाता है वहां उसकी पदावधि सूचना आयुक्त और मूख्य सूचना आयुक्त के रूप में कुल मिलाकर पांच वर्ष से अधिक नहीं होगी।



3)    मुख्य सूचना आयुक्त या कोई सूचना आयुक्त, अपना पद ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति या उनके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष पहली अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए उपवर्णित प्ररूप के अनुसार एक शपथ या प्रतिज्ञान लेगा और उस पर हस्ताक्षर करेगा।



4)    मुख्य सूचना आयुक्त या कोई सूचना आयुक्त, किसी भी समय, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा:

परंतु मुख्य सूचना आयुक्त या किसी सूचना आयुक्त को धारा 14 में विनिर्दिष्ट रीति से हटाया जा सकेगा।



5)      संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते-

(क) मुख्य सूचना आयुक्त की वही होंगी, जो मुख्य निर्वाचन आयुक्त की है;

(ख)  सूचना आयुक्त की वही होगी, जो निर्वाचन आयुक्त की है:

परंतु मुख्य सूचना आयुक्त या कोई सूचना आयुक्त अपनी नियुक्ति के समय, भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी पूर्व सेवा के संध में कोई पेंशन, अक्षमता या क्षति पेंशन से भिन्न प्राप्त कर रहा है तो मुख्य सूचना आयुक्त या कोई सूचना आयुक्त के रूप में सेवा के संबंध में उसके वेतन में से, उस पेंशन की, जिसके अंतर्गत पेंशन का ऐसा कोई भाग, जिसे संराशिकृत किया गया था और सेवानिवृत्ति उपदान के समतुल्य पेंशन को छोडकर सेवा निवृत्ति फायदों के अन्य रुपों के समतुल्य पेंशन भी है, रकम को कम कर दिया जायगा:

परंतु यह और कि मुख्य सूचना आयुक्त या कोई सूचना आयुक्त अपनी नियुक्ति के समय, किसी केन्द्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी निगम में या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी सरकारी कंपनी में की गई किसी पूर्व सेवा के संबंध में सेवानिवृत्ति फायदे प्राप्त कर रहा है तो मुख्य सूचना आयुक्त या कोई सूचना आयुक्त के रूप में सेवा के संबंध में उसके वेतन में से, सेवा निवृत्ति फायदों के समतुल्य पेंशन की रकम कम कर दी जाएगी:

परंतु यह भी कि मुख्य सूचना आयुक्त या कोई सूचना आयुक्त के वेतन, भत्तों और सेवा की अन्य शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके अलाभकर रूप में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।



6)    केन्द्रीय सरकार, मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्तों को उतने अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी, जितने इस अधिनियम के अधीन उनके कृत्यों के दक्ष पालन के लिए आवश्यक हों और इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए नियुक्त किए गय अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के निबंधन और शर्ते ऐसी होंगी जो विहीत की जाएं।

टिप्पणी

 धारा 13 मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्त की पदावधि तथा सेवा शर्ते के बारे में प्रावधान करती है।

पदावधि-

 मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति पाँच वर्षों के लिए की जाएगी, लेकिन वह-

i.        65  वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद पद धारण नहीं कर सकेगा; तथा

ii.        पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।

सूचना आयुक्त की नियुक्ति भी पाँच वर्षों॑ के लिए की जाएगी लेकिन वह-

i    65  वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद पद धारण नहीं कर सकेगा; तथा

ii     पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।

iii      मुख्य सूचना आयुक्त का पद रिक्त होने पर ऐसे पद पर नियुक्त किया जा सकेगा, लेकिन दोनो पदों की अवधि कुल मिलाकर पाँच वर्षों से अधिक नहीं हो सकेगी।



शपथ-

         मुख्य सूचना आयुक्त तथा  सूचना आयुक्त को पदभार ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष निर्धारित प्ररुप में शपथ या प्रतिज्ञान करना होगा तथा उस पर उसके हस्ताक्षर किए जाएंगे।

त्यागपत्र-

         मुख्य सूचना आयुक्त अथवा सूचना आयुक्त द्वारा राष्ट्रपति को सम्बोधित करते हुए कभी भी अपने पद से त्यागपत्र दिया जा सकेगा।

मुख्य सूचना आयुक्त तथा  सूचना आयुक्त को निर्दारित अवधि से पुर्व कभी भी धारा 14 के अन्तर्गत अपने पद से हटाया जा सकेगा।

सेवा शर्तें-

          उपधारा (5)  के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त की सेवा शर्ते वे ही होंगी जो मुख्य निर्वाचन आयुक्त की है।

इसी प्रकार सूचना आयुक्त की सेवा शर्ते वे ही होगी जो निर्वाचन आयुक्त की है।

उनको संदेय वेतन एवं भत्ते भी तदनुरुप ही होगे। इनकी सेवा शर्तों तथा वेतन भत्तों में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा जो उनके लिए अहितकर हो।

लेकिन यदि सूचना आयुक्त  या मुख्य सूचना आयुक्त कोई सेवानिवृत्त लाभ जैसे-पेंशन आदि प्राप्त कर रहे हैं तो वह उनको संदेय वेतन-भत्तों में से कम कर दी जाएगी।

मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के बारे में प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 324 में किया गया है। एस. एस. धनोय बनाम युनियन आफ इण्डिया के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति तथा पदच्युति की शक्तियां राष्ट्रपति में निहित्त है। राष्ट्रपति द्वारा आवश्यकतानुसार आयुक्त के पदों की संख्या में कमी की जा सकती है और पद को समाप्त भी किया जा सकता है।





कर्मचारिवृन्द-

    मुख्य सूचना आयुक्त तथा  सूचना आयुक्त के कार्यालयों में केन्द्रीय सरकार द्वारा आवश्यकतानुसार कर्मचारियों की नियुक्ति की जा सकेगी तथा उनके वेतन, भत्ते व अन्य सेवा शर्ते वे होंगी जो विहित की जाये।


14  के अनुसार  मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त को हटाये जाने की प्रक्रिया निम्नानूसार होगीं –

14. (1) उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, मुख्य सूचना आयुक्त या किसी सूचना आयुक्त को राष्ट्रपति के आदेश द्वारा साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर उसके पद से तभी हटाया जाएगा, जब उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति द्वारा उसे किए गए किसी निर्देश पर जांच के पश्चात यह रिपोर्ट दी हो कि, यथास्थिति, मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त को उस आधारपर हटा दिया जाना चाहिए।



(2) राष्ट्रपति, उस मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त को, जिसके विरूद्ध उपधारा (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय को निर्देश किया गया है, ऐसे निर्देश पर उच्चतम न्यायालय की रिपोर्ट प्राप्त होने पर राष्ट्रपति द्वारा आदेश पारित किए जाने तक पद से निलंबित कर सकेगा और यदि आवश्यक समझे तो जांच के दौरान कार्यालय में उपस्थिति होने से भी प्रतिषिद्ध कर सकेगा।



(3) उपधारा (1)  में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति, मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त को आदेश द्वारा पद से हटा सकेगा, यदि यथास्थिति, मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त-

(क)  दिवालिया न्यायनिर्णीत किया गया है; या



(ख)  वह ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराया गया है, जिसमें राष्ट्रपति के राय में, नैतिक अधमता अंतर्वतित है; या



(ग)  अपनी पदावधि के दौरान, अपने पद के कर्तव्यों से परे किसी वैतनिक नियोजन में लगा हुआ है; या

(घ) राष्ट्रपति की राय में, मानसिक या शारीरिक अक्षमता के कारण पद पर बने रहने के अयोग्य है; या

(ड)  उसने ऐसे वित्तिय और अन्य हित अर्जित किए है, जिनसे मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पडने की संभावना है।



(4) यदि मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त , किसी प्रकार भारत सरकार द्वारा या उसमें हितबद्ध है या किसी संविदा या करार से संबंद्ध या उसमें हितबद्ध है या किसी निगमित कंपनी के किसी सदस्य के रूप में से अन्यथा और उसके अन्य सदस्यों के साथ सामान्यत: उसके लाभ में या उससे प्रोदभूत होने वाले किसी फायदे या परिलब्धियों में हिस्सा लेता है तो वह उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए, कदाचार का दोषी समझा जाएगा।

टिप्पणी

  धारा 14 मुख्य सूचना आयुक्त तथा सूचना आयुक्तों को पद से हटाये जाने के संबंध में है। मुख्य सूचना आयुक्त तथा  सूचना आयुक्त को निम्नांकित आधारों पर राष्ट्रपति द्वारा पद से हटाया जा सकेगा-

(क) कदाचार; अथवा

(ख) असमर्थता।

लेकिन इन आधारों पर पदच्युति केवल तभी की जा सकेगी जब उच्चतम न्यायालय द्वारा जांच के पश्चात इस आशय की रिपोर्ट दे दी जाये।

जब राष्ट्रपति द्वारा कदाचार असमर्थता बाबत जांच के लिए कोई मामला उच्चतम न्यायालय को निर्देशित किया जाता है, तब ऐसी रिपोर्ट के आने तक राष्टपति द्वारा सूचना आयुक्त अथवा मुख्य सूचना आयुक्त को निलम्बित किया जा सकेगा और आवश्यक होने पर उसे कार्यालय में उपस्थित होने से भी रोका जा सकेगा।

उपधारा (4)  के अनुसार निम्नांकित को कदाचार माना गया है-

(क) भारत सरकार द्वारा या उसकी ओर से की गई किसी संविदा या करार से सम्बद्ध या हितबध्द रहना; या

(ख)  किसी निगमित कम्पनी के सदस्य से अन्यथा किसी रूप में और उसके अन्य सदस्यों के साथ संयुक्त रुप में उसके लाभ में या उससे प्रोदभुत होने वाले किसी फायदे या परिलब्धियों में हिस्सा लेना।

पदच्युति के आधार-

      राष्टपति द्वारा निम्नांकित आधारों पर भी मुख्य सूचना आयुक्त या  सूचना आयुक्त

को उसके पद से हटाया जा सकेगा-

1.    जब वह नैतिक अधमता के किसी मामले में दोष सिध्द ठहराया गया हो।

2.    जब उसने लाभ का कोई पद धारण कर लिया हो अर्थात वह वैतनिक नियोजन में लग गया हो।

3.    जब वह दिवालिया न्यायनिर्णित कर दिया गया हो।

4.    जब वह शारीरिक या मानसिक अक्षमता के कारण पद पर बने रहने के अयोग्य हो गया हो।

5.    जब उसने वित्तीय या ऐसे अन्य हित अर्जित कर लिए हो जिससे उसके पदीय कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पडता हो।

नैतिक अधमता-

नैतिक अधमता से जुडे मामलों में दोषसिध्द ठहराये जाने पर मुख्य सूचना आयुक्त अथवा  सूचना आयुक्त को राष्ट्रपति द्वारा पद से हटाया जा सकता है।

“नैतिक अधमता” शब्द की कोई परिभाषा नहीं दी गई है और न दी जा सकती है, क्योंकि नैतिक अधमता प्रत्येक मामले के तथ्यों एवं उसकी परिस्थितियों पर निर्भर करती है। एक कृत्य एक स्थान पर नैतिक अधमता वाला हो सकता है तो अन्य स्थान पर नहीं। उदाहणार्थ- किसी स्त्री के कुल्हे थपथपाना पाश्चात्य संस्कृति में अच्छा माना जा सकता है, लेकिन भारतीय संस्कति में नही।

अत: ,मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है न्याय, ईमानदारी, सदाचार आदि के प्रतिकुल आचरण को नैतिक अधमता कहा जा सकता है। किसी नैतिक अधमता को राष्ट्रपति की राय में होना आवश्यक है।


धारा 15 राज्य सूचना आयोग का गठन



धारा 15. (1) प्रत्येक राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा …………………. राज्य का नाम सूचना आयोग के नाम से ज्ञात एक निकाय का गठन करेगी, जो ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन करेगा, जो उसे इस अधिनियम के अधीन सौंपे जाएं।



(2)   राज्य सूचना आयोग निम्नलिखित से मिलकर बनेगा-

(क) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त; और

(ख) दस से अनधिक उतनी संख्या में राज्य सूचना आयुक्त, जितने आवश्यक समझे जाएं।



(3)  राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा निम्निलिखित से मिलकर बनी किसी समिति की सिफारिशपर की जाएगी-

i.        मुख्यमंत्री, जो समिति का अध्यक्ष होगा।

विधानसभा में विपक्ष का नेता; और

ii.        मुख्यमंत्री द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाने वाला  मंत्रिमंडल का सदस्य।

स्पष्टीकरण – शंकाओं के निवारण के लिए यह घोषित किया जाता है कि जहां विधान सभा में विपक्षी दल  के नेता को उस रूप में मान्यता नहीं दी गई है, वहां विधान सभा में सरकार के विपक्षी एकल सबसे बडे समूह के नेता को विपक्षी दल का नेता समझा जाएगा।



(4) राज्य सूचना आयोग के कार्यों का साधारण अधीक्षण, निदेशन और प्रबंध राज्य मुख्य सूचना आयुक्त से निहीत होगा, जिसकी सहायता राज्य सूचना आयुक्तों द्वारा की जाएगी और वह ऐसी सभी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे सभी कार्य और बातें कर सकेगा, जिनका राज्य सूचना आयोग द्वारा  इस अधिनियम के अधीन किसी अन्य प्राधिकारी के निर्देशों के अधीन रहे बिना स्वतंत्र रुप से प्रयोग किया जा सकता है या जो की जा सकती है।



(5) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त विधि, विज्ञान ओर प्रौद्यगिकी, समाज सेवा, प्रबंध, पत्रकरिता, जनसंपर्क माध्यम या प्रशासन तथा शासन का व्यापक ज्ञान और अनुभव रखने वाले जनजीवन में प्रख्यात व्यक्ति होंगे।



(6) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या कोई राज्य सूचना आयुक्त, यथास्थिति, संसद का सदस्य या किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्रों के विधान-मंडल का सदस्य नहीं होगा या कोई अन्य लाभ का पद धारित नहीं करेगा या किसी राजनैतिक दल से संबद्ध नहीं होगा अथवा कोई कारबार नहीं करेगा या कोई वृत्ति नहीं करेगा।



(7) राज्य सूचना आयोग का मुख्यालय, राज्य में ऐसे स्थान पर  होगा और जिसे राज्य  सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करें और राज्य  सूचना आयोग, राज्य   सरकार के पूर्व अनुमोदन से, राज्य  में अन्य स्थानों पर कार्यालय स्थापित कर सकेगा।



टिप्पणी

              इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग तथा कृत्यों का निर्वहन करने के लिए धारा 15 में एक राज्य सूचना आयोग का गठन का प्रावधान किया गया है। आयोग का गठन  राजपत्र में अधिसूचना जारी करते हुए राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा।

गठन-

   राज्य सूचना आयोग का गठन निम्नांकित से मिलकर होगा-

1.    राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एक; तथा

2.     राज्य केन्द्रीय सूचना आयुक्त (अधिक तम दस)

चयन समिति-

         राज्य  मुख्य सूचना आयुक्त तथा सूचना आयुक्तों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जायेगी। इन पदों पर नियुक्त हेतु नामों की अनुशंसा एक चयन  समिति द्वारा की जाएगी, जिसमें निम्नांकित सदसय होंगे-

(क) मुख्यमंत्री                                          अध्यक्ष

(ख) विधान सभा में विपक्ष का नेता                     सदस्य

(ग)  मुख्यमंत्री द्वारा नामनिर्देष्ट                         सदस्य

एक मंत्री



अधीक्षण की शक्तियां-

           राज्य सूचना आयोग के कार्यों के अधीक्षण, निदेशन और प्रबंधन की शक्तियां मुख्य सूचना आयुक्त में निहीत होगी। सूचना आयुक्तों द्वारा मुख्य सूचना आयुक्त के कार्यों में सहायता की जायेगी।



अहर्ताये

राज्य मुख्य सूचना आयुक्ततथा सूचना आयुक्त के पदों पर ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त किया जायेगा जो निम्नांकित में विशेष ज्ञान एवं अनुभव रखता हों-

1)    विधि;

2)    विज्ञान और प्रौद्योगिकी;

3)    समाज सेवा;

4)    प्रबंधन;

5)    पत्रकारिता;

6)    जन माध्यम;

7)    प्रशासन; अथवा

8)    शासन।

प्रतिबंध-

            राज्य मुख्य सूचना आयुक्त अथवा सूचना आयुक्त-

(क)  संसद या राज्य विधान मण्डल के सदस्य नहीं होगे;

(ख)  लाभ का कोई अन्य पद धारण नहीं कर सकेंगे;

(ग)  किसी राजनितिक दल से सम्बद्ध नहीं होंगे; अथवा

(घ)  कोई कारबार या वृत्ति नहीं कर सकेंगे।



मुख्यालय-

राज्य सूचना आयोग का मुख्यालय  ऐसे स्थान पर होगा जो राज्य  सरकार राजपत्र में अधिसूचना जारी कर विहित्त करें।दिल्ली में होगा।

राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से आयोग द्वारा  मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा भारत में अन्य स्थानों पर अपने कार्यालय स्थापित किए जा सकेंगे।

धारा 16.  के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त पदावधि और सेवा शर्ते निम्नानूसार होगीं -



16 राज्य मुख्य सूचना आयुक्त पदावधि और सेवा शर्ते

1)    राज्य  मुख्य सूचना आयुक्त, उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, पांच वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेगा और पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा:

पंरतु यह कि कोई राज्य मुख्य सूचना आयुक्त पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात उस रूप में पद धारण नहीं करेगा।



2)    प्रत्येक राज्य सूचना आयुक्त, उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है पांच वर्ष की अवधि के लिए या पैसंठ वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, इनमें से जो भी पूर्वतर हो पद धारण करेगा और राज्य सूचना आयुक्त के रूप में पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा:

परंतु प्रत्येक राज्य सूचना आयुक्त, इस उपधारा के अधीन अपना पद रिक्त करने पर धारा 15 की उपधारा (3)  में विनिर्दिष्ट रीति से मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्त के लिए पात्र होगा;

परंतु यह और कि जहां राज्य सूचना आयुक्त की राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ती कियी जाता है, वहां उसकी पदावधि राज्य सूचना आयुक्त और राज्य  मूख्य सूचना आयुक्त के रूप में कुल मिलाकर पांच वर्ष से अधिक नहीं होगी।



3)    राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या कोई राज्य सूचना आयुक्त, अपना पद ग्रहण करने से पूर्व राज्यपाल या उनके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष पहली अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए उपवर्णित प्ररूप के अनुसार एक शपथ या प्रतिज्ञान लेगा और उस पर हसताक्षर करेगा।



4)    राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या कोई राज्य सूचना आयुक्त, किसी भी समय, राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा:

परंतु राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या किसी राज्य सूचना आयुक्त को धारा 17 में विनिर्दिष्ट रीति से हटाया जा सकेगा।



5)      संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते-

(क) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त की वही होंगी, जो किसी निर्वाचन आयुक्त की है;

(ख)  राज्य सूचना आयुक्त की वही होगी, जो राज्य सरकार के मुख्य सचिव की है;

परंतु यदि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या कोई राज्य सूचना आयुक्त अपनी नियुक्ति के समय, भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी पूर्व सेवा के संबंध में कोई पेंशन, अक्षमता या क्षति पेंशन से भिन्न प्राप्त कर रहा है तो राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त के रूप में सेवा के संबंध में उसके वेतन में से, उस पेंशन की रकम को , जिसके अंतर्गत पेंशन का ऐसा कोई भाग, जिसे संराशिभूत किया गया था और सेवानिवृत्ति उपदान के समतुल्य पेंशन को छोडकर सेवा निवृत्ति फायदों के अन्य रुपों के समतुल्य पेंशन भी है, रकम को कम कर दिया जायगा:

परंतु यह और कि जहां राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त अपनी नियुक्ति के समय, किसी केन्द्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी निगम में या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी सरकारी कंपनी में की गई किसी पूर्व सेवा के संबंध में सेवानिवृत्ति फायदे प्राप्त कर रहा है तो वहां राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त के रूप में सेवा के संबंध में उसके वेतन में से, सेवा निवृत्ति फायदों के समतुल्य पेंशन की रकम कम कर दी जाएगी:

परंतु यह भी कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्तों और सेवा की अन्य शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके अलाभकारी रूप में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।



6)    राज्य सरकार, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य  सूचना आयुक्तों को उतने अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी, जितने इस अधिनियम के अधीन उनके कृत्यों के दक्ष पालन के लिए आवश्यक हों और इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए नियुक्त किए गय अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के निबंधन और शर्ते ऐसी होंगी जो विहीत की जाएं।

टिप्पणी

 धारा 16 राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्त की पदावधि तथा सेवा शर्ते के बारे में प्रावधान करती है।

पदावधि-

 राज्य मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति पाँच वर्षों के लिए की जाएगी, लेकिन वह-

i.        65  वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद पद धारण नहीं कर सकेगा; तथा

ii.        पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।

राज्य मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति भी पाँच वर्षों॑ के लिए की जाएगी लेकिन वह-

i    65  वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद पद धारण नहीं कर सकेगा; तथा

ii     पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।

iii      मुख्य सूचना आयुक्त का पद पर कार्य करने की सम्पूर्ण अवधि कुल मिलाकर पाँच वर्षों से अधिक नहीं हो सकेगी।



शपथ-

          राज्य मुख्य सूचना आयुक्त तथा  सूचना आयुक्त को पदभार ग्रहण करने से पूर्व राज्यपाल या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष निर्धारित प्ररुप में शपथ या प्रतिज्ञान करना होगा तथा उस पर उसके हस्ताक्षर किए जाएंगे।

त्यागपत्र-

         राज्य मुख्य सूचना आयुक्त अथवा सूचना आयुक्त द्वारा राज्यपाल को सम्बोधित करते हुए कभी भी अपने पद से त्यागपत्र दिया जा सकेगा।



 वेतन –भत्ते एवं सेवा शर्तें-

          राज्य मुख्य सूचना आयुक्त की सेवा शर्ते वे ही होंगी जो भारत के  निर्वाचन आयुक्त की है।

इसी प्रकार सूचना आयुक्त की सेवा शर्ते वे ही होगी जो  राज्य  के मुख्य सचिव की है।

उनको संदेय वेतन एवं भत्ते भी तदनुरुप ही होगे। इनकी सेवा शर्तों तथा वेतन भत्तों में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा जो उनके लिए अहितकर हो।


धारा 17 के अनुसार  मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त को हटाये जाने की प्रक्रिया निम्नानूसार होगीं –



. (1) उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या किसी राज्य सूचना आयुक्त को राज्यपाल के आदेश द्वारा साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर उसके पद से तभी हटाया जाएगा, जब उच्चतम न्यायालय ने राज्यपाल द्वारा उसे किए गए किसी निर्देश पर जांच के पश्चात यह रिपोर्ट दी हो कि, यथास्थिति, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त को उस आधारपर हटा दिया जाना चाहिए।



(2) राज्यपाल, उस राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त को, जिसके विरूद्ध उपधारा (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय को निर्देश किया गया है, ऐसे निर्देश पर उच्चतम न्यायालय की रिपोर्ट प्राप्त होने पर राज्यपाल द्वारा आदेश पारित किए जाने तक पद से निलंबित कर सकेगा और यदि आवश्यक समझे तो जांच के दौरान कार्यालय में उपस्थिति होने से भी प्रतिषिद्ध कर सकेगा।



(3) उपधारा (1)  में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी राज्यपाल किसी बात के होते हुए भी राज्यपाल, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त याकिसी राज्य सूचना आयुक्त को आदेश द्वारा पद से हटा सकेगा, यदि यथास्थिति, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त-

(क)  दिवालिया न्यायनिर्णीत किया गया है; या



(ख)  वह ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराया गया है, जिसमें राज्यपाल के राय में, नैतिक अधमता अंतर्वतित है; या



(ग) वह अपनी पदावधि के दौरान, अपने पद के कर्तव्यों से परे किसी वैतनिक नियोजन में लगा हुआ है; या

(घ) राज्यपाल की राय में, मानसिक या शारीरिक अक्षमता के कारण पद पर बने रहने के अयोग्य है; या

(ड)  उसने ऐसे वित्तिय और अन्य हित अर्जित किए है, जिनसे मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पडने की संभावना है।



(4) यदि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या कोई राज्य सूचना आयुक्त, किसी प्रकार राज्य  सरकार द्वारा या उसकी ओर से की गई किसी संविदा या करार से संबद्ध या उसमें हितबद्ध है या किसी निगमित कंपनी के किसी सदस्य के रूप में से अन्यथा और उसके अन्य सदस्यों के साथ सामान्यत: उसके लाभ में या उससे प्रोदभूत होने वाले किसी फायदे या परिलब्धियों में हिस्सा लेता है तो वह उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए, कदाचार का दोषी समझा जाएगा।



टिप्पणी

  धारा 17 राज्य मुख्य सूचना आयुक्त तथा सूचना आयुक्तों को पद से हटाये जाने के संबंध में है।

आधार-

राज्य मुख्य सूचना आयुक्त तथा  सूचना आयुक्त को निम्नांकित आधारों पर राज्यपाल द्वारा पद से हटाया जा सकेगा-

(क) कदाचार; अथवा

(ख) असमर्थता।

जांच-

लेकिन इन आधारों पर पदच्युति केवल तभी की जा सकेगी राज्यपाल द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा जांच के पश्चात इस आशय की रिपोर्ट दे दी जाये।

निलम्बन-

जब राज्यपाल द्वारा  जांच के लिए कोई मामला उच्चतम न्यायालय को निर्देशित किया जाता है, तब ऐसी रिपोर्ट के आने तक राज्यपाल द्वारा सूचना आयुक्त अथवा

राज्य मुख्य सूचना आयुक्त को निलम्बित किया जा सकेगा और आवश्यक होने पर उसे कार्यालय में उपस्थित होने से भी रोका जा सकेगा।

पदच्युति के आधार-

      राज्यपालद्वारा निम्नांकित आधारों पर भी राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या  सूचना आयुक्त

को उसके पद से हटाया जा सकेगा-

1.    जब वह नैतिक अधमता के किसी मामले में दोष सिध्द ठहराया गया हो।

2.    जब उसने लाभ का कोई पद धारण कर लिया हो अर्थात वह वैतनिक नियोजन में लग गया हो।

3.    जब वह दिवालिया न्यायनिर्णित कर दिया गया हो।

4.    जब वह शारीरिक या मानसिक अक्षमता के कारण पद पर बने रहने के अयोग्य हो गया हो।

5.    जब उसने वित्तीय या ऐसे अन्य हित अर्जित कर लिए हो जिससे उसके पदीय कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पडता हो।

कदाचार-

इस धारा के प्रयोजनार्थ निम्नांकित को “कदाचार” माना गया है-

(क)  भारत सरकार द्वारा या उसकी ओर से की गई किसी संविदा में हितबद्ध हो जाना;

(ख)  किसी निगमित कम्पनी के सदस्य से अन्यथा किसी रूप में और उसके अन्य सदस्यों के साथ संयुक्त रुप से लाभ में हिस्सा प्राप्त करना; आदि।